हल्दीघाटी के युद्ध और महाराणा प्रताप को लेकर दिए गए राजस्थान की उप मुख्यमंत्री दिया कुमारी के बयान से एक बार फिर विवाद छिड़ गया है.
जयपुर में एक कार्यक्रम में दिया कुमारी ने , "हल्दीघाटी के शिलालेख में लिखा था कि महाराणा प्रताप यह युद्ध हार गए थे. मैं उस समय वहां से सांसद थी, मैंने उस शिलालेख को बदलवाया. और आज वहां लिखा है कि महाराणा प्रताप युद्ध जीते थे. अपने कार्यकाल में यह मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि थी."
दिया कुमारी ने इसके लिए राजस्थान से ही आने वाले तत्कालीन संस्कृति राज्यमंत्री अर्जुनराम मेघवाल के सहयोग का ज़िक्र किया, जिन्होंने पूर्व लिखित शिलापट्ट हटाने का आदेश दिया था.
असल में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (एएसआई) ने 2021 में राजस्थान के राजसमंद ज़िले के रक्ततलाई से वो विवादित शिलालेख हटा दिया था, जिस पर लिखा था कि 1576 में हल्दीघाटी की लड़ाई में महाराणा प्रताप की सेना को पीछे हटना पड़ा था.

दिया कुमारी के ताज़ा बयान को लेकर फिर विवाद हो रहा है.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने एक्स पर , "आपके पूर्वज राजा मानसिंह ने हकीम ख़ान सूर के ख़िलाफ़ हल्दीघाटी जीता था. एक राजपूत सेनापति ने एक मुस्लिम सेनापति को हराया. आप इतिहास को फिर से क्यों लिखना चाहती हैं?"
बहुचर्चित हल्दीघाटी के युद्ध में मुग़ल बादशाह अकबर की ओर से सेनापति मानसिंह और महाराणा प्रताप की ओर से सेनापति हकीम ख़ान सूर लड़ रहे थे.
इसी साल अप्रैल में बीजेपी के वरिष्ठ नेता और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने भी था कि हकीम ख़ान सूर हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के साथ और मुग़लों के ख़िलाफ़ लड़े थे.
रक्ततलाई का जो शिलापट्ट हटाया गया है, उस पर लिखा था, ''रक्ततलाई जिसे बोलचाल की भाषा में ख़ून की तलाई भी कहते हैं, बनास के दूसरे किनारे की ओर एक चौड़ा मैदान है. यहाँ शाही और प्रताप की सेना के बीच घमासान युद्ध हुआ था. इस युद्ध का नेतृत्व महाराणा प्रताप एवं मानसिंह घोड़े और हाथी पर सवार होकर क्रमशः कर रहे थे. युद्ध इतना भयंकर था कि संपूर्ण मैदान लाशों से भर गया था. ऐसी स्थिति में प्रताप की सेना को पीछे हटना पड़ा और युद्ध 21 जून, 1576 को समाप्त हो गया.''
इस शिलालेख को हटाने की तब दिया कुमारी ने मांग की थी.
इसे हटाते हुए जोधपुर के तत्कालीन एएसआई सर्कल सुपरिटेंडेंट बिपिन चंद्र नेगी ने इंडियन एक्सप्रेस से था, ''1975 में जब इंदिरा गाँधी इन इलाक़ों में आई थीं तब चेतक समाधि, बादशाह बाग़, रक्ततलाई और हल्दीघाटी में ये पट्टियाँ लगाई गई थीं. उस वक़्त ये स्मारक केंद्र की देखरेख में नहीं आते थे. इन स्थानों को 2003 में राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया था, लेकिन इन शिलापट्टों पर ये सूचनाएँ नहीं थीं. लंबे समय के कारण ये पुराने पड़ गए थे. इसके साथ ही तारीख़ और तथ्य को लेकर विवाद भी थे.''
उन्होंने कहा था, ''इतिहास के जानकारों और जनता के प्रतिनिधियों से इन शिलालेखों को हटाने के लिए कई अनुरोध आये थे. इन्हीं को देखते हुए, मैंने स्वतः संज्ञान लिया."
साल 2017 में राजस्थान बोर्ड की किताबों के पाठ्यक्रम में हल्दीघाटी के युद्ध के बारे में तथ्य बदल दिए गए थे जिसे लेकर विवाद हुआ था.
उस समय राजस्थान में बीजेपी की सरकार थी.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार सोशल साइंस की नई किताब को 2017-18 में छात्रों के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया था.
किताब के इस चैप्टर को लिखने वाले चंद्रशेखर शर्मा ने दावा किया था कि 'ऐसे कई तथ्य हैं जो इस ओर इशारा करते हैं कि लड़ाई के नतीजे महाराणा प्रताप, मेवाड़ के राजपूत राजा के पक्ष में रहे.'
तब राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के तत्कालीन चेयरमैन बीएल चौधरी ने था कि किताब में कहीं भी सीधे-सीधे यह नहीं लिखा गया है कि युद्ध में महाराणा प्रताप ने अकबर को हराया.
उन्होंने कहा था, "कुछ इतिहासकारों ने इसे परिणामविहीन अथवा अनिर्णित युद्ध की संज्ञा दी है. परिणाम की समीक्षा के लिए कुछ बिंदु विचारणीय हैं. अकबर का उद्देश्य महाराणा प्रताप को ज़िंदा पकड़ना था और दूसरे वो मेवाड़ को मुग़ल साम्राज्य में मिलाना चाहता था और दोनों ही उद्देश्यों में वो विफल रहा. इससे साबित होता है कि अकबर की विजय नहीं होती है. अकबर की मानसिंह और आसिफ़ खां के प्रति नाराज़गी थी जिसमें उनकी ड्योढ़ी बंद कर दी गई थी. मुग़लों का मेवाड़ की सेना का पीछा न करना. ये ऐसे बिंदु हैं जो हल्दीघाटी का परिणाम प्रताप के पक्ष में लाकर खड़ा कर देते हैं."
तब सोशल मीडिया पर यह ख़बर चर्चित हुई थी और कई लोगों ने तंज़ कसते हुए कहा था कि '450 साल बाद आख़िरकार महाराणा प्रताप ने अकबर को धूल चटा दी.'
अब्दुल क़ादिर बदायूंनी की 'मनतख़ब-उत-तवारीख़', निज़ामुद्दीन की 'तबाक़त-ए-अकबरी' और अबुल फ़ज़ल की 'अकबरनामा' जैसी इतिहास की किताबों में हल्दीघाटी के युद्ध का विस्तृत विवरण है.
, हल्दीघाटी की लड़ाई 21 जून, 1576 को हुई थी. मुग़ल फ़ौज का नेतृत्व कर रहे थे राजा मान सिंह.
शुरू में ऐसा लग रहा था कि राजपूत, मुग़लों पर भारी पड़ रहे हैं लेकिन अकबर के ख़ुद युद्ध में शामिल होने की अफ़वाह से राजपूतों का मनोबल टूट गया.
इस लड़ाई में मेवाड़ की फ़ौज का मुख्य हाथी राम प्रसाद का महावत मारा गया.
'महाराणा प्रताप- द इनविंसिबिल वारियर' की लेखिका रीमा हूजा के अनुसार, "इस युद्ध में महाराणा प्रताप और मान सिंह के बीच ज़बरदस्त लड़ाई हुई और मानसिंह के हाथी की सूंढ़ में लगी तलवार से प्रताप का घोड़ा चेतक बुरी तरह घायल हो गया."
"मेवाड़ की फ़ौज के जनरलों ने तय किया कि पीछे हट जाना चाहिए और महाराणा प्रताप को युद्ध क्षेत्र से निकल जाना चाहिए. यह लड़ाई उसी दिन समाप्त हो गई थी."

हल्दीघाटी की लड़ाई को मुग़लों की स्पष्ट जीत नहीं कहा जा सकता, क्योंकि अबुल फ़ज़ल समेत उस समय के कई इतिहासकारों ने लिखा है कि अकबर इस लड़ाई के परिणाम से बहुत ख़ुश नहीं थे.
उनका कहना है कि उन्होंने बहुत समय तक इस लड़ाई के जनरलों मान सिंह, आसफ़ ख़ाँ और काज़ी ख़ाँ को अपने दरबार में पेश होने की इजाज़त नहीं दी.
हल्दीघाटी की लड़ाई के बाद महाराणा प्रताप अकबर की सेना के ख़िलाफ़ छापामार युद्ध करने लगे. वो मुग़लों पर घात लगाकर हमला करते और फिर जंगलों में ग़ायब हो जाते.
क़रीब दो दशक तक वह इसी तरह युद्ध लड़ते रहे. 1596 में शिकार खेलते वक़्त वह घायल हो गए थे और इसके दो साल बात ही 57 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया.
लेकिन कई दक्षिणपंथी इतिहासकारों का मानना है कि अकबर को महाराणा प्रताप और मेवाड़ पर कभी मुकम्मल जीत नहीं मिली और इसलिए हल्दीघाटी के युद्ध के परिणाम प्रताप के पक्ष में ला खड़ा करते हैं.
वहीं डॉ. राम पुनियानी जैसे इतिहासकार इसे दो राजाओं के बीच युद्ध बताते हैं.
, "इसे हिंदू मुसलमान के बीच लड़ाई बताई जाती है. लेकिन अकबर की ओर से राजा मान सिंह और अकबर के बेटे शहज़ादा सलीम लड़ रहे थे और राणा प्रताप के साथ हकीम ख़ान सूर लड़ रहे थे. यह लड़ाई मज़हब के लिए नहीं बल्कि सत्ता के लिए थी."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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