1950 के दशक में जवाहरलाल नेहरू द्वारा स्थापित भारत-कनाडा के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों की नींव आज मोदी सरकार के कार्यकाल में हिल गई है।
एक गहरा मित्र अब हमारे दुश्मनों की सूची में शामिल हो गया है। जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे की खबरों के बीच, यह जानना जरूरी है कि कनाडा के साथ हमारे संबंध इतने खराब क्यों हुए।
भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक होमी जहांगीर भाभा को माना जाता है, जबकि कनाडा को इस कार्यक्रम की जननी कहा जाता है। 1950 के दशक में कनाडा ने भारत को पहला परमाणु रिएक्टर स्थापित करने में मदद की।
यदि कनाडा ने 1955 में भारत को 40 मेगावाट का CIRUS रिएक्टर नहीं दिया होता, तो भारत आज परमाणु शक्ति संपन्न देश नहीं होता। कनाडा ने इस रिएक्टर के लिए आवश्यक यूरेनियम का आधा हिस्सा भी प्रदान किया।
भाभा ने 1948 में नेहरू को लिखा था कि परमाणु ऊर्जा के विकास के लिए एक स्वतंत्र निकाय की आवश्यकता है। इसी के आधार पर नेहरू ने 1948 में परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की।
1955 में कनाडा ने भारत को एनआरएक्स परमाणु रिएक्टर के डिजाइन और निर्माण में मदद की पेशकश की, जो कि एक महत्वपूर्ण कदम था।
भाभा और कनाडाई परमाणु ऊर्जा एजेंसी के प्रमुख के बीच की मित्रता ने इस सहयोग को सफल बनाने में मदद की।
नेहरू ने इस सहयोग को भारत के विकास के लिए महत्वपूर्ण बताया और कनाडा के प्रधानमंत्री के साथ इस पर चर्चा की।
कनाडा ने भारत को परमाणु तकनीक प्रदान कर उसके ऊर्जा और रक्षा क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाने में मदद की।
1950 से 1960 के दशक तक इस कार्यक्रम को गोपनीय रखा गया। नेहरू ने कहा था कि गोपनीयता आवश्यक है ताकि अनुसंधान का लाभ अन्य देशों को न मिले।
भाभा और नेहरू के बीच की मित्रता ने इस सहयोग को और मजबूत किया। भाभा ने नेहरू को हमेशा 'प्रिय भाई' कहकर संबोधित किया।
1957 में भाभा ने सरकार को ट्रोम्बे में परमाणु ऊर्जा संस्थान की स्थापना का सुझाव दिया, जिसके बाद मुंबई में AEET की स्थापना हुई।
भारत के पास यूरेनियम का सीमित भंडार था, लेकिन थोरियम का विशाल भंडार उपलब्ध था। भाभा ने इसी आधार पर थोरियम आधारित रणनीति पेश की।
कनाडा से मिले रिएक्टर ने भारत को परमाणु हथियार बनाने की क्षमता विकसित करने का अवसर दिया। 1964 में भारत ने परमाणु हथियार बनाने की तकनीकी क्षमता विकसित करने का निर्णय लिया।
1974 में भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया, जिसके बाद कनाडा ने भारत के साथ परमाणु सहयोग निलंबित कर दिया।
पियरे ट्रूडो के नेतृत्व में कनाडा ने भारत के साथ कई महत्वपूर्ण घटनाओं का सामना किया।
1973 में ट्रूडो ने भारत की यात्रा की और द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा की।
1998 के पोखरण परीक्षण के बाद कनाडा ने भारत के साथ परमाणु सहयोग समाप्त कर दिया।
2008 में भारत ने अमेरिका के साथ न्यूक्लियर समझौता किया, जिसके बाद 2010 में भारत और कनाडा के बीच फिर से परमाणु सहयोग समझौता हुआ।
हालांकि, हाल के वर्षों में भारत-कनाडा संबंधों में तनाव बढ़ा है, विशेषकर खालिस्तान मुद्दे को लेकर।
भारत ने कनाडा से खालिस्तानी समूहों पर कार्रवाई करने की अपील की, लेकिन कनाडा ने इसे 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' का हवाला देकर टाल दिया।
रूस के साथ भी भारत के संबंधों में उतार-चढ़ाव आया है।
बांग्लादेश के साथ भी भारत के संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं।
भारत की कूटनीति पर सवाल उठते हैं कि क्या हम अपने मित्रों को दुश्मन बना रहे हैं।
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