लाइव हिंदी खबर :-हिंदू धर्म में एकादशी की बहुत महत्व होता है। हिंदू पंचांग की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी कहते हैं। एकादशी प्रत्येक महीने में दो बार आती है, जिसे काफी शुभ माना जाता है।
जया एकादशी पौराणिक के पीछे ये है पौराणिक कथाकहा जाता है कि किसी जमाने में नंदन वन में उत्सव का आयोजन चल रहा था। इस आयोजन उत्सव में देवता, सिद्ध संत, दिव्य पुरुष मौजूद थे। उस समय गंधर्व गा रहे थे, गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थी। माल्यवान नाम का गंधर्व था जो बेहद ही सुरीला गा रहा था। जितनी सुरीली आवाज थी उतना ही सुंदर उसका रूप। उधर गंधर्व कन्याओं में एक पुष्यवती नामक नृत्यांगना भी थी। अचानक पुष्यवती की नजर माल्यवान पर पड़ती है और फिर नजर है कि वहां से हटने का नाम नहीं लेती। पुष्यवती के नृत्य को देखकर माल्यवान भी सुध बुध खो देता है और वह गाते-गाते लय सुर से भटक जाता है। दोनों की कृत को देख भगवान इंद्र गुस्सा हो जाते हैं और उन्हें श्राप दिया कि स्वर्ग से वंचित होकर मृत्यु लोक में पिशाचों सा जीवन भोगोगे। फिर क्या था श्राप का प्रभाव तुरंत पड़ा और दोनों धड़ाम से धरती पर आ गिरे वो भी हिमालय पर्वत के पास के जंगलों में।
अब दोनों एक वृक्ष पर रहने लगे। पिशाची जीवन बहुत ही कष्टदायक था। दोनों बहुत दुखी थे। एक बार माघ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन था पूरे दिन में उन्होंने केवल एक बार ही फलाहार किया था। जैसे-जैसे दिन ढलने की ओर बढ़ रहा था ठंड भी बढ़ती जा रही थी। देखते ही देखते रात हुई और ठंड और भी बढ़ गई थी, ठंड के मारे दोनों रात्रि भर जागते रहे और भगवान से अपने किये पर पश्चाताप भी कर रहे थे। सुबह तक दोनों की मृत्यु हो गई। जैसे-तैसे अंजाने में ही सही उन्होंनें एकादशी का उपवास किया था।
भगवान के नाम का जागरण भी हो चुका था इसी का फल था कि मृत्युपर्यन्त उन्होंने पुन: खुद को स्वर्ग लोक में पाया। देवराज इंद्र उन्हें स्वर्ग में देखकर अचंभित हुए और पूछा कि वे श्राप से कैसे मुक्त हुए। तब उन्होंने बताया कि भगवान विष्णु की उन पर कृपा हुई। हमसे अंजाने में माघ शुक्ल एकादशी यानि जया एकादशी का उपवास हो गया जिसके प्रताप से भगवान विष्णु ने हमें पिशाची जीवन से मुक्त किया। इस प्रकार सभी ने जया एकादशी के महत्व को जाना।
जया एकादशी व्रत और पूजा विधिजया एकादशी के दिन यदि आप व्रत रख रहे हैं तो आपको कुछ चीजों का ख्याल रखाना चाहिए। जया एकादशी के व्रत के लिए उपासक (व्रती) को पहले दिन यानि दशमी के दिन एक बार ही सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। अपनी मनोवृति को भी सात्विक ही रखना चाहिए। व्रती को ब्रह्मचर्य का पालन भी करना चाहिए। एकादशी के दिन व्रत का संकल्प करके धूप, दीप, फल, पंचामृत आदि से भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण की पूजा करनी चाहिए। रात में श्रीहरि के नाम का ही भजन कीर्तन भी करना चाहिए। फिर द्वादशी के दिन किसी पात्र ब्राह्मण अथवा जरूरतमंद को भोजन कराकर और क्षमतानुसार दान दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिए।
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