Badrinath Temple Facts : बदरीनाथ धाम भगवान नारायण तपोस्थली के रूप में माना जाता है। यह उत्तराखंड के चार धाम में से एक है। यह मंदिर अपने आप में अनोखे रहस्यों को समेटे हुए है। ऐसी ही एक रोचक बात यह है कि यहां पूजा के दौरान शंख बजाना मना है। वो भी तब जब भगवान विष्णु की प्रिय वस्तुओं में से एक है शंख। उसके बावजूद यहां विष्णु भगवान के बदरीनाथ धाम में शंख बजाकर पूजा नहीं की जाती है। आइए आपको बताते हैं यहां शंख न बजाने के पीछे क्या है वैज्ञानिक और क्या है पौराणिक मान्यता। पौराणिक कारणबदरीनाथ धाम के आसपास का क्षेत्र अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है और इसे नारायण भगवान का तपस्थल माना जाता है। एक मान्यता के अनुसार एक बार जब भगवान विष्णु ने यहां तपस्या की थी, तो शंखनाद करने पर उस ध्वनि से देवताओं की साधना भंग हो सकती थी, इसलिए इस स्थान को शांत क्षेत्र माना गया और यहां शंख बजाना वर्जित कर दिया गया। नाग वंश की मान्यताएक अन्य कथा के अनुसार, बदरीनाथ धाम के निकट नागों का वास माना जाता है। शंख की ध्वनि को नागों के लिए कष्टदायक माना जाता है। कहा जाता है कि शंख बजाने से नाग क्रोधित हो सकते हैं, जिससे क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाएं या बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं। इसी कारण यहां शंख बजाने पर प्रतिबंध है। वैज्ञानिक तर्क बद्रीनाथ में शंख क्यों नहीं बजाया जाता, इसके पीछे वैज्ञानिक तर्क हैं। ठंड के मौसम में यहां बर्फ गिरती है। ऐसे में अगर शंख बजाया जाए तो उसकी आवाज पहाड़ों से टकराती है। इससे प्रतिध्वनि पैदा होती है। इस प्रतिध्वनि के कारण बर्फ में दरार आ सकती है। साथ ही, बर्फीले तूफान आने की आशंका भी बढ़ जाती है। धार्मिक मान्यता शास्त्रों में इसकी कहानी मिलती है। एक बार लक्ष्मी जी बद्रीनाथ के तुलसी भवन में ध्यान कर रही थीं। उसी समय, भगवान विष्णु ने शंखचूर्ण नाम के एक राक्षस को मारा था, हिन्दू धर्म में जीत होने पर शंख बजाते हैं, पर विष्णु जी लक्ष्मी जी के ध्यान को भंग नहीं करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने शंख नहीं बजाया। पौराणिक कथा एक कहानी के अनुसार, अगस्त्य मुनि केदारनाथ में राक्षसों को मार रहे थे। तभी दो राक्षस, अतापी और वतापी, वहां से भाग गए। अतापी ने अपनी जान बचाने के लिए मंदाकिनी नदी की मदद ली। वतापी ने बचने के लिए शंख का सहारा लिया और उसके अंदर छिप गया। ऐसा माना जाता है कि अगर उस समय कोई शंख बजाता, तो असुर उसमें से निकलकर भाग जाता। यही कारण है कि बद्रीनाथ में शंख नहीं बजाया जाता है।
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