Chanakya Niti : चाणक्य नीति में आचार्य चाणक्य ने जीवन में आने वाली जटिलताओं को किस तरह सुलझाना चाहिए, इस बारे में सरलता से बताया है। जिस प्रकार जीवन जीने के लिए हवा, पानी, भोजन आदि की जरूरत होती है, ठीक इसी तरह अच्छा जीवन जीने के लिए धन की आवश्यकता होती है। वर्तमान में धन की महत्ता वैसे भी और बढ़ गई है। लेकिन कुछ लोगों के पास धन होकर भी न होने के बराबर होता है। आचार्य चाणक्य बताते हैं कि ऐसे लोगों का धन व्यर्थ होता है। ऐसे में आइये जानते हैं कि आचार्य चाणक्य किसे धन की शोभा बताते हैं और किसे व्यर्थ। आचार्य चाणक्य से जानें कैसे बढ़ती है धन की शोभा गुणो भूषयते रूपं शीलं भूषयते कुलम्।सिद्धिर्भूषयते विद्यां भोगो भूषयते धनम्।।यानी आचार्य चाणक्य बता हैं कि गुणों से मनुष्य का सौंदर्य बढ़ता है। शील से कुल की शोभा बढ़ती है। कार्यों में सफल होने पर विद्या शोभित होती है और धन का सही तरीके से उपभोग करने पर धन की शोभा बढ़ती है। चाणक्य नीति में कहा गया है कि व्यक्ति कितना ही सुंदर हो लेकिन अगर उसमें गुणों का अभाव हो तो उसकी सुंदरता किसी काम की नहीं होती है। ठीक इसी तरह अच्छा आचरण करने वाला ही अपने कुल की शोभा को बढ़ता है। उच्च कुल में पैदा हुआ व्यक्ति भी नीच आचरण करके कुल को बदनाम कर देता है। और मनुष्य के कार्यों को सिद्ध नहीं कर पाने वाली विद्या शोभा नहीं देती है और इसका कोई लाभ नहीं होता है। इसी प्रकार धन को अच्छे कार्यों में लगाना ही धन की शोभा है। धन का सही कार्यों में उपभोग करने से धन की शोभा बढ़ती है। अमीर होकर भी गरीब हैं ऐसे लोग निर्गुणस्य हतं रूपं दुःशीलस्य हतं कुलम्।असिद्धस्य हता विद्या अभोगेन हतं धनम्।।आचार्य चाणक्य कहते हैं कि गुणहीन व्यक्ति का रूपवान होना व्यर्थ है। जो व्यक्ति अच्छा आचरण करना नहीं जानता है उसकी अपने ही कुल में निंदा होती है। इसी प्रकार जिस व्यक्ति में किसी भी काम को पूरा करने की क्षमता नहीं होती है, ऐसे बुद्धिहीन व्यक्ति की विद्या होना व्यर्थ है। ठीक इसी प्रकार जिस धन का उपभोग ही नहीं किया जाता है उसके होने का कोई मतलब ही नहीं है। ऐसा धन होना व्यर्थ है और ऐसा धनवान व्यक्ति धनी होकर भी निर्धन है। विद्वान को होती है धन धान्य की प्राप्तिविद्वान् प्रशस्यते लोके विद्वान् गच्छति गौरवम्।विद्यया लभते सर्वं विद्या सर्वत्र पूज्यते।।चाणक्य नीति में कहा गया है कि इस संसार में विद्वान व्यक्ति की तारीफ होती है। विद्वान को आदर सत्कार और धन धान्य की प्राप्ति होती है। प्रत्येक वस्तु की प्राप्ति विद्या से होती है और विद्या की हर जगह पूजा होती है।
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