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अहंकार की वो अदृश्य आग जिसमे जलकर राख हो जाते है रिश्तों, सफलता और आत्मा, वीडियो में जानिए कैसे इससे बचे ?

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अहंकार यानी ‘मैं’ की अतिशयोक्ति। यह मनुष्य के भीतर पनपने वाली वह भावना है जो उसे वास्तविकता से दूर कर, स्वयं को सर्वोपरि मानने पर मजबूर कर देती है। कई बार यह भावनात्मक, मानसिक और सामाजिक रूप से इतनी गहराई तक जड़ें जमा लेता है कि व्यक्ति अनजाने में विनाश की ओर बढ़ने लगता है। प्राचीन ग्रंथों से लेकर आधुनिक मनोविज्ञान तक, हर जगह अहंकार को चेतावनी की दृष्टि से देखा गया है।


अहंकार की पहचान: कब और कैसे पनपता है ये ज़हर?
अहंकार कोई अचानक पैदा नहीं होता। यह धीरे-धीरे व्यक्ति की उपलब्धियों, समाज में मिले सम्मान या कभी-कभी आत्मग्लानि को ढकने वाले नकाब की तरह जन्म लेता है। शुरुआत में यह आत्मविश्वास जैसा लगता है, लेकिन समय के साथ यह आत्ममुग्धता, दूसरों को तुच्छ समझने और निर्णय लेने में अंधापन ला देता है।उदाहरण के तौर पर, एक सफल व्यवसायी जो अपने कर्मचारियों की मेहनत को नजरअंदाज करता है और खुद को ही हर सफलता का श्रेय देता है, वह अहंकार का पहला शिकार बन जाता है। समय के साथ, जब वह लोगों का विश्वास खोने लगता है, तब अहंकार उसे पतन की ओर ढकेलता है।

धार्मिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से अहंकार
हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म में अहंकार को मोक्ष के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा माना गया है। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, "अहंकार को त्यागो, तभी सच्चा ज्ञान संभव है।" बुद्ध ने भी कहा था कि जब तक 'मैं' और 'मेरा' की भावना है, तब तक दुख का चक्र चलता रहेगा। उपनिषदों में अहंकार को ‘अविद्या’ का परिणाम कहा गया है – यानी आत्मज्ञान की कमी से उपजा भ्रम। जब तक व्यक्ति स्वयं के भीतर के वास्तविक 'स्व' को नहीं पहचानता, वह बाहरी आडंबर में ही उलझा रहता है।

अहंकार के प्रभाव: सामाजिक, मानसिक और आत्मिक नुकसान
संबंधों में दरार: अहंकारी व्यक्ति अक्सर दूसरों की बातों को महत्व नहीं देता। यह स्वभाव रिश्तों में कड़वाहट लाता है, चाहे वह परिवार हो या कार्यस्थल।
निर्णय लेने में भूल: अहंकार व्यक्ति को अति आत्मविश्वासी बना देता है। वह दूसरों की राय नहीं मानता, जिससे अक्सर गलत निर्णय होते हैं।
मानसिक तनाव और अकेलापन: जब अहंकार के कारण व्यक्ति समाज से कट जाता है, तो वह मानसिक रूप से टूटने लगता है। उसे लगता है कि सब उसके विरोधी हैं।


आध्यात्मिक पतन: आत्मज्ञान की राह पर अहंकार सबसे बड़ी दीवार है। यह व्यक्ति को बाहर की दुनिया में उलझाकर भीतर की यात्रा से रोक देता है।

इतिहास से सबक: अहंकार से हुए पतन के उदाहरण
इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जहां अहंकार ने बड़े-बड़े साम्राज्य मिटा दिए:
रावण: ब्रह्मा से वरदान, अद्भुत बुद्धि और शक्ति के बावजूद, सीता हरण का उसका अहंकार ही उसके पतन का कारण बना।


दुर्योधन: अपनी सत्ता और श्रेष्ठता के भ्रम में वह धर्म की राह छोड़ बैठा और पूरा कुरु वंश युद्ध की आग में झुलस गया।
हिटलर: आधुनिक इतिहास में हिटलर का अहंकार उसके आत्म-विनाश और विश्व युद्ध का कारण बना।

आधुनिक जीवन में अहंकार का प्रभाव
आज का युग प्रतिस्पर्धा और प्रदर्शन का है। सोशल मीडिया ने हर व्यक्ति के भीतर एक 'छवि' बना दी है, जिसे बनाए रखने के चक्कर में लोग दिखावे और अहम में जीने लगे हैं। 'लाइक्स' और 'फॉलोअर्स' से मिलने वाला अहं भाव धीरे-धीरे व्यक्ति की वास्तविकता से उसकी दूरी बढ़ा देता है।
कार्यालयों में बॉस की कठोरता, रिश्तों में ‘मैं सही हूं’ की जिद, या समाज में श्रेष्ठ दिखने की होड़ – ये सब अहंकार की आधुनिक छवियां हैं।

कैसे करें अहंकार से मुक्ति?
स्वयं का निरीक्षण करें (Self-Awareness): दिन के अंत में खुद से पूछें – क्या मैंने आज किसी की अवमानना की? क्या मेरे फैसले दूसरों पर थोपे गए?
ध्यान और आत्मचिंतन: मेडिटेशन व्यक्ति को अपने भीतर झांकने की शक्ति देता है, जिससे अहंकार धीरे-धीरे हटता है।
कृतज्ञता की भावना विकसित करें: जब आप यह मानते हैं कि आपके जीवन में दूसरों का योगदान भी है, तो अहंकार स्वतः कम होने लगता है।
सेवा और परोपकार: बिना किसी स्वार्थ के सेवा करने से व्यक्ति ‘मैं’ से ऊपर उठता है और ‘हम’ की भावना में जीने लगता है।
ज्ञान और सत्संग: अच्छे ग्रंथों का अध्ययन और ज्ञानी व्यक्तियों की संगति अहंकार को विनम्रता में परिवर्तित कर सकती है।

निष्कर्ष:
अहंकार एक अदृश्य दुश्मन है जो चुपचाप हमारे भीतर घर कर लेता है और धीरे-धीरे हमारी चेतना, निर्णय, संबंध और आत्मिक उन्नति को प्रभावित करता है। इस आग से बचने के लिए आवश्यक है आत्मनिरीक्षण, विनम्रता और सच्चे ज्ञान का सहारा लेना।जिस दिन हम 'मैं' को छोड़कर 'हम' में जीना सीख लेंगे, वही दिन होगा जब हमारे जीवन से अहंकार रूपी अंधकार मिटकर आत्मा का प्रकाश फैलेगा।

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